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कैलाश पर्वत

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कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य, कैलाश पर्वत के इन रहस्यों से नासा भी हो चुका है हैरान! कैलाश पर्वत के रहस्य - कैलाश पर्वत, यह एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग शिव का निवास स्थान* मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है। किन्तु वहीँ नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। उन सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि, यहाँ पर कई पवित्र शक्तियां जरुर काम कर रही हैं। तो आइये आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े हुए कुछ रहस्य बताते हैं।  कैलाश पर्वत के रहस्य रहस्य 1– रूस के वैज्ञानिको का ऐसा मानना है कि, कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहाँ पर चारों दिशाएँ मिल रही हैं। वहीँ रूसी विज्ञान का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है। धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थ...

धर्म गुरु

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।। राम ।। मित्रोआज गुरुवार है, आज हम आपको धर्मग्रंथो में वर्णित नौ महान गुरुओं की कथायें संक्षेप में बतायेगें!!!!!!! सनातन धर्म में प्रारंभ से ही गुरुओं के सम्मान की परंपरा रही है। हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक गुरुओं का वर्णन मिलता है, जिन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा को नई ऊंचाइयां प्रदान की है। गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। आज हम आपको धर्म ग्रंथों में बताए गए महान गुुरुओं के बारे में बता रहे हैं- 1. भगवान शिव,,,,,,,,भगवान शिव आदि व अनंत हैं अर्थात न तो कोई उनकी उत्पत्ति के बारे में जानता है और न कोई अंत के बारे में। यानी शिव ही परमपिता परमेश्वर हैं। भगवान शिव ने भी गुरु बनकर अपने शिष्यों को परम ज्ञान प्रदान किया है। अगर कहा जाए कि भगवान शिव सृष्टि के प्रथम गुरु हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को अस्त्र शिक्षा शिव ने ही दी थी। शिव के द्वारा दिए गए परशु (फरसे) से ही परशुराम ने अनेक बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार नागों की बहन जरत्कारु (...

महाकुम्भ

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महाकुम्भ क्या है?             कु पृथ्वी को कहते हैं।उम्भ परिपूरित करने को कहते हैं।इसका अर्थ हुआ जो अपने प्रभाव से पृथ्वी को तेज और दिव्यता से भर दे वह कुम्भ है। #thread - भारतवर्ष में चार स्थानों पर महाकुम्भ लगते हैं।ये चार स्थान हैं १. हरिद्वार (माया) २. प्रयाग ३- उज्जयिनी और ४. नासिक है   महाकुम्भ सूर्य,चंद्र और बृहस्पति के योग से लगते हैं।अतःप्रत्येक स्थान में महाकुम्भ बारह वर्षों के अन्तर पर पड़ता है।कभी कभी यह बारह वर्ष की जगह ग्यारह वर्ष या तेरह वर्ष पर भी पड़ता है पर यह स्थिति बृहस्पति की गति के कारण आती है।  महाकुम्भ की ग्रह स्थिति को देखा जा सकता है। स्थान सूर्य चन्द्र बृहस्पति नदी १.हरिद्वार--- मेष मेष कुम्भ गंगा २. प्रयाग--- मकर मकर वृष गंगा(त्रिवेणी) ३. उज्जयिनी--मेष मेष सिंह शिप्रा ४. नासिक--- सिंह सिंह सिंह गोदावरी  बृहस्पति प्रायः बारह वर्षों बाद घूम कर पुनः उसी राशि पर आता है।इसी कारण महाकुम्भ बारह वर्षों प...

चौरासी लाख योनियाँ

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चौरासी लाख योनियों का रहस्य हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित ८४००००० योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। अब समस्या ये है कि कई लोग ये नहीं समझ पाते कि वास्तव में इन योनियों का अर्थ क्या है?   गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। तो आइये आज इसे समझने का प्रयत्न करते हैं।  सबसे पहले ये प्रश्न आता है कि क्या एक जीव के लिए ये संभव है कि वो इतने सारे योनियों में जन्म ले सके? तो उत्तर है - हाँ। एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन ८४००००० योनियों में भटकती रहती है। अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही ८४००००० योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है। ये तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है।  अब प्रश्न ये है कि यहाँ "योनि" का अर्थ क्या है? अगर आसान भाषा में समझा जाये तो योनि का अर्थ है जाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम स्पीशीज (Species) कहते हैं। अर्थात इस विश्व में जितने भी प्रकार की ...

बाबा मदमहेश्वर

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❤️ *बाबा मदमहेश्वर* ❤️ भगवान शिव को समर्पित एक केदार हैं जो पंच केदारों में द्वितीय नंबर पर आता है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जहाँ भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। यहाँ से हिमालय की चोटियों के होने वाले अद्भुत दृश्य किसी का भी मन मोह लेते हैं। मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की नाभि (पेट) प्रकट हुई थी। बैल का जो भाग भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित हैं। अन्य तीन केदारों में तुंगनाथ (भुजाएं), रुद्रनाथ (मुख) व कल्पेश्वर (जटाएं) आते हैं। मदमहेश्वर मंदिर को पंच केदार में से दूसरे केदार के रूप में जाना जाता है । *हर हर महादेव* 🚩 *घर घर म हादेव* 🛕 *जय बाबा केदार* 🔱

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

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रुद्रप्रयाग से चन्द्र शिला तक अलकनंदा और मंदाकिनी के मध्य भू भाग को स्कंद पुराण में तुंग क्षेत्र कहा गया है। इस तुंग क्षेत्र में युगों युगों से स्थापित तीन शिवालयों ( चन्द्र) शिला तुंगनाथ, फलासी तुंगनाथ, नारी तुंगनाथ) को तुंगनाथ नाम से जाना जाता रहा है। यद्यपि द्वापरयुग में चन्द्र शिला तुंगनाथ में भगवान शिव द्वारा बाहु दर्शन देकर इस तीर्थ को तृतीय केदारनाथ के नाम से भी जाना जाता है लेकिन इस तीर्थ का वर्णन द्वापरयुग से पूर्व त्रेतायुग में भी आया है। वही सतयुग में चन्द्रमा के तप का सम्बंध भी इस तीर्थ से है। वहीं स्कन्द पुराण में सत्यतार नमक स्थान में तारागणों के द्वारा तुंगनाथ भगवान की तपस्या का वर्णन है। तुंग क्षेत्र के ये तीनों तीर्थों का तुंगनाथ नाम से प्रसिद्ध होना इनकी युगों युगों की प्राचीनता को प्रमाणित करता है। जहां तक चोपता नाम का जुड़ा होना है वह महज एक भौगोलिक संयोग है। चारों ओर से चौकस हल्की ढालदार भूमि जिसे प्राचीन गढ़वाली भौगोलिक नामकरण में चोपता कहा जाता है दोनो ही तीर्थों में होने के कारण यह नाम स्थान भी दुर्लभ संयोग ही है। चोपता, चोपड़ा, लगभग एक ही प्रकार की भौगोलिक स्थल...

दुनियां का सबसे बड़ा शक्तिपीठ

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दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ मां छिन्नमस्तिका मंदिर 🚩🚩 झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है।    रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है। छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के समीप ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है।    मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मत...